दुःख में सुख और जिंदगी – मोटिवेशनल स्टोरी इन हिंदी

Estimated read time 1 min read

दुःख में सुख और जिंदगी – मोटिवेशनल स्टोरी इन हिंदी

 

अधूरी छत और बरसात। राजपूताना राजा रजवाड़ों का शहर बड़े-बड़े महल शानदार हवेलियां खूबसूरत इमारतों से भरा है।
राजस्थान की खूबसूरती ऐसी की आंखें चमक जाती हैं। इस चमक को फीका करने वाली गरीबी भी राजस्थान की पहचान बनी हुई यही बात इस मरूभूमि को कलंकित करती है। यहां गरीब साहूकारों के ब्याज के जाल में फंस कर अपना पूरा जीवन गिरवी रख देता है।

यह कहानी है मोहनदास की।

मोहनदास चमड़े की जूतियां बनाता था। मोहन अपनी पत्नी शांति और बेटे गोविंद के साथ रहता था। मोहन के पास एक पुश्तैनी घर था, जो कर्ज की चादर ओढ़े हुए था। कर्ज का ब्याज ना पूरा हो रहा था ना उसके पुश्तैनी घर की अधूरी छत। मोहन के घर की छत नहीं बनी थी। जैसे तैसे सिर छुपाने को कपड़े का पंडाल बना रखा था, जो भी कहो घर के नाम पर बस यही था। मोहन का परिवार दो वक्त की रोटी जैसे तैसे खा पाता इतनी खराब थी कि कभी कभी भूखे ही सो जाते।

Motivational Story in Hindi – Overthinking

मकान की छत बनाना तो उसके लिए अगले जन्म की ही बात थी, फिर भी मोहन चाहता था कि कैसे भी करके छत बन जाए। सच मानो तो यह मोहन का इकलौता सपना था। जो पूरा होता ना दिखाई दे रहा था। गरीबी तो मानो मोहन से ऐसे जुड़ गई थी जैसे जन्मों-जन्मों से उसका साथ हो। मोहन का परिवार गांव से कटा हुआ था।अछूत होने के कारण उसे लोग ज्यादा मुंह नहीं लगाते थे। ना कोई दोस्त ना कोई सगा बस उसकी पत्नी शांति और बेटा गोविंद।

गांव वाले बस उसको तभी बुलाते जब गांव में कोई मवेशी मर जाता। मोहन का काम था कि जो मवेशी मरे उसकी लाश को दफनाने के लिए जंगल ले जाए, मोहन को उसके बदले थोड़ा अनाज मिल जाता था। मरे हुए जानवर की चमड़ी निकाल कर सुखाकर उसकी जूतियां बनाना, लेकिन मरा हुआ जानवर जिसका होता उसको एक जोड़ी जूती बनाकर देनी पड़ती वह भी मुफ्त में। सूखा पतला शरीर आंखें धंसी हुई झुके कंधे साफ-साफ बोल रहे थे कि गरीबी बेहद है। बिना छत वाले मकान का मलाल अलग से। शांति सुबह जल्दी नहाती ताकि कोई देख ना ले शांति को, शर्म आती मगर किससे शिकायत करें।

मोहन भी जानता था उसका अधूरा सपना कभी पूरा ना हो सकेगा। वह कभी उसके घर की छत पूरी ना बना पाएगा। शांति जानती थी कि मोहन घर की अधूरी छत पूरी करवाना चाहता है। लेकिन वह भी क्या करती गरीबी का तमगा उनके माथे पर लगा दिया गया था। वह भगवान को बहुत कोसती उनकी ऐसी हालत के लिए फिर सोचती पिछले कर्मों का फल होगा।

बहुत दिन हो गए थे गांव में कोई जानवर मारा ना था, उनके घर में बहुत कम अनाज बचा था, पेट काट काट कर बचा रहे थे। मोहन को गांव में और कोई काम मिलता भी ना था। अछूत होने के कारण कोई उसे अपने खेत पर मजदूरी के लिए भी नहीं रखता। जहां गांव वालों ने मोहन को पूरे गांव से दूर कर रखा था। वही गांव वालों को शांति से कोई बैर नहीं था। शायद उसका कारण शांति की खूबसूरती और गांव वालों की हवस थी। शांति बहुत पतिव्रता नारी थी। गरीबी की आग ने उसकी पवित्रता को खराब नहीं किया था।

अक्सर साहूकार गरीबों की बहन बेटियों को अपनी हवस का शिकार बना लेते थे। खैरियत थी कि मोहन का परिवार अभी तक ऐसे भेड़ियों से बचा हुआ था। आज पूरा 1 सप्ताह हो गया था शांति ने भर पेट खाना नहीं खाया था बस जो मिलता गोविंद को खिला देते थे। सच में भगवान ने आंखें मूंद ली थी उनको मोहन शांति का दर्द नजर नहीं आ रहा था।

एक रात मोहन और उसका परिवार सो रहा था। अचानक मौसम बिगड़ा तेज हवाएं चलने लगी। मोहन और शान्ती बेटे के साथ छप्पर की बनी छत के नीचे कोने में बैठ गया। अंधेरी काली रात मानव काली अमावस्या हो। हवाई और तेज हुई छप्पर उड़ गया, खुला आसमान तेज आंधी और मोहन का परिवार, गोविंद यह सब देख कर डर गया शांति ने उसे अपनी गोद में छुपा लिया।

तेज हवाओं के साथ बारिश ने भी अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया। शांति और गोविंद कांप रहे थे।मोहन की आंखें भर आई थी। मोहन जानता था कि उसके पास जो कुछ भी था वह भी बह गया। अब खोने को कुछ नहीं था पूरा आसमान में बिजली कि कड़कड़ाहट से भर गया था। मोहन समझ गया था कि शांति और गोविंद बहुत घबरा गए हैं।

ऐसा लग रहा था मानो यह बारिश आज सब कुछ बहा ले जाएगी। कमजोर और ऊपर से इतनी तेज बारिश। मोहन थोड़ी देर एकदम शांत होकर बैठ गया। अचानक मोहन खड़ा हुआ और नाचने लगा अब ना उससे तेज हवाओं का खौफ था ना बारिश का डर, मोहन को nchte दे गोविंद भी चुप हो गया।

डरपोक पत्थर | Sneaky stone I Motivational Story in Hindi

मोहन ने दोनों को नाचने को कहा यकीन मानो पूरा परिवार उस रात अपनी बर्बादी पर बहुत नाचा। सुबह हुई मोहन जानता था कि अब सब खत्म हो चुका है। उसका घर पूरी तरह तबाह हो चुका है यह बारिश अब सब बहा ले गई। मोहन की अब तक की मेहनत उसके सपने और उसकी अधूरी छत भी। शांति कहीं से कुछ खाने को मांग लाई जैसे तैसे गोविंद का पेट भर पाया जो कुछ बचा था खाने को। शांति खुद भूखी रही और उसने मोहन को खिला दिया. शायद औरत होना यही होता है हालात कैसे भी हो परिवार के लिए सब कुछ करती है।
मोहन टूटे हुए घर को देख रहा था और शांति मोहन को देख रही थी। शांति जानती थी कि गांव में उनके परिवार को कोई एक रुपए भी उधार ना देगा। उन्हें यह जगह छोड़नी पड़ेगी और कहीं रहने जाना पड़ेगा लेकिन मोहन अपने पुरखों की निशानी कैसे छोड़ देता। बारिश के कारण गांव के पास वाली नदी उफान पर चल रही थी पूरे गांव में पानी भरा हुआ था। ऐसे हालात में मोहन को कुछ काम भी नहीं मिल रहा था। दिन बीत गए शांति और मोहन ने भरपेट खाया हो जो कुछ मिलता गोविंद को खिला देते। शांति मोहन समझ गए थे कि वह भूख से मर जाएंगे। मोहन निराश हो चुका था कि अब कुछ अच्छा होगा एक बेबसी और दर्द ने मोहन को जकड़ लिया था।

जिंदगी से हार चुका मोहन खुद को खत्म करने की सोच रहा था। बार-बार खुदकुशी के ख्याल आते फिर शांति और गोविंद का चेहरा सामने आ जाता. गरीबी की घुटन और परिवार को सामने भूख से मरता देख मोहन अंदर तक टूट चुका था। शांति समझ गई थी कि मोहन कुछ गलत करने वाला है। उसने को गले लगाया और कहा वह मोहन के साथ खुश है और हालात कैसे भी हो वह हमेशा उसके साथ रहेगी। तभी मोहन ने देखा कि कोई उसे बुला रहा है।

मोहन ने देखा गांव के लोग आए हैं मोहन एकाएक डर गया मोहन ने धीमी आवाज में पूछा क्या हुआ मुझसे कोई गलती हो गई है। तभी भीड़ में से एक आदमी बोला मोहन मेरे घर चलो दूसरा आदमी बोला नहीं मोहन पहले मेरे घर चलो। मोहन को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि सब उसको अपने घर क्यों ले जाने को बोल रहे हैं।

मोहन को कहां पता था कि जिस बरसात को वह अपने लिए श्राप समझ रहा था उसी बारिश ने मोहन के भाग चमका दिए।
भारी बारिश और अंधड़ के कारण गांव पानी से भर गया था। गांव वालों के मवेशी मर गए थे और मवेशियों को जंगल में दफनाने का काम सिर्फ मोहन करता था। पहले गांव वाले सिर्फ थोड़ा अनाज देते थे अब मवेशी हटाने के लिए पैसे देने को तैयार थे। मरे हुए जानवरों की लाशें सड़ रही थी।

गांव वाले बहुत परेशान थे वह जल्द छुटकारा चाहते थे। मोहन समझ गया था कि उसको बहुत पैसे मिलने वाले हैं। मोहन और शांति ने मिलकर एक-एक कर सारे जानवरों को दफना दिया। उन्होंने जूतियां बनाने के लिए चमड़ा भी नहीं निकाला। गांव के लोगों ने मोहन को पैसा अनाज, कपड़ा बहुत कुछ दिया। अब मोहन के पास इतने पैसे आ चुके थे कि वह अपना टूटा हुआ घर ठीक करवा सके। अनाज इतना था 2 साल तक खाए तो भी कम ना हो। और शांति को सब सपने जैसा लग रहा था।

शांति और मोहन समझ चुके थे कि जो बरसात उनके लिए काल बन कर आई थी। उस बरसात ने उन्हें नया जीवन दे दिया। और ऐसे मोहन की अधूरी छत पूरी हो गई।

दोस्तों कमेंट और शेयर करना ना भूलें।

You May Also Like

More From Author

8Comments

Add yours
  1. 2
    site

    Hello there! This is my first visit to your blog!
    We are a collection of volunteers and starting a new project in a community in the same niche.
    Your blog provided us valuable information to work on. You have done a wonderful
    job!

  2. 5
    israel-lady.co.il

    Next time I read a blog, Hopefully it wont fail me as much as this one. After all, Yes, it was my choice to read through, however I genuinely thought youd have something useful to talk about. All I hear is a bunch of moaning about something you could fix if you werent too busy looking for attention.

  3. 6
    sender

    Oh my goodness! Amazing article dude! Tһanks,
    However I am going throuցh difficulties witһ your RSS.

    І don’t know the reaѕon why I can’t join it. Is there ɑnyone else getting the same RSS рroblems?
    Anyone ᴡho knows the answer will you kindly respond?
    Thanx!!

  4. 7
    Vince

    Do you mind if I quote a few of your articles as long as I provide
    credit and sources back to your site? My website is in the
    very same area of interest as yours and my users would definitely benefit from a lot of the information you provide here.

    Please let me know if this alright with you. Regards!

Leave a Reply to website Cancel reply