हर औरत में देवी दर्शन – Motivational Story in Hindi

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हर औरत में देवी दर्शन-Motivational Story in Hindi

 

मैं एक छोटे से गांव में रहती हूं जहां से अभी भी आने जाने का साधन आने जाने वाली ट्रेनें हैं। काफी पिछड़ा हुआ गांव है मेरा। गांव के लोग चाहे कोई भी ट्रेन हो उसकी चेन खींच उसे रोक देते हैं और फिर मजदूरी करने, सब्जी, दूध बेचने शहर को जाते हैं। छोटा सा स्टेशन है गांव से थोड़ी दूर जहां सिर्फ सुबह शाम दोनों तरफ से एक पैसेंजर ट्रेन रूकती है।और ट्रेन को रोकने के लिए आसपास का कोई गांव वाला शहर में रुक जाता है। आश्चर्य है ना हमारे गांव में ट्रेन मार्ग कब से है पर सड़क मार्ग नहीं है।

 

स्टेशन से आधा किलोमीटर की दूरी पर एक देवी मंदिर है कोशी नदी के किनारे। देवी मंदिर जाने के लिए हम गांव वाले ट्रेन की पटरियों के किनारे चलकर जाते हैं क्योंकि वही एक रास्ता है मंदिर जाने का देवी मैया की बड़ी मानता है। आस-पास के गांव में कोई भी शुभ कार्य हो गांव वाले मैया को पूजे बिना कार्य नहीं करते। आखिर ऐसा करें भी क्यों ना जब मां कोशी हर साल अपने रौद्र रूप में आकर हर चीज को डुबोने लगती हैं तो सिर्फ भैया ही सहारा होती हैं।

 

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कितनी भी बाढ़ आ जाए या का मंदिर और आसपास का हिस्सा नहीं डूबता। मेरे लिए तो कुछ ज्यादा ही मैया का महत्व है आज मैं जो कुछ भी हूं मैया के कारण। आज मैं विधायक साहब से मिलने जा रही हूं ताकि मेरे गांव में हाई स्कूल खुले और गांव को सड़क मार्ग से जोड़ने की कोशिश की जाए।
मेरी उम्र 30 साल है मैं गांव की पहली लड़की हूं जिसने गांव में रहते हुए मैट्रिक तक की चीज शिक्षा पूरी की है वह भी माता का आशीर्वाद मिलने के कारण। लगभग 20 साल पहले की बात है मेरे भाइयों का मुंडन हो रहा था। पिताजी ने भाइयों को नए कपड़े दिलाए थे मुझे कहा कर्जा लेकर मुंडन करा रहे हैं जल्दी ही कर्ज जा चुका देंगे और तुझे भी नया कपड़ा देंगे।

 

बच्ची थी फिर भी जानती थी ना मेरा मुंडन हो ना बिना फ्रॉक फटे नया कपड़ा मिलेगा। देवी मंदिर में भाइयों का मुंडन हुआ वहां एक औरत पूजा करती हुई मिली, सबसे अलग-थलग की साफ-सुथरी लंबी सी। मां ने कहा बिल्कुल देवी जैसी दिखती है। पूजा और मुंडन के बाद हम लोग स्टेशन पर आ गए, वह औरत भी स्टेशन पर आकर बेंच पर बैठ गई।

 

पिताजी रात के भोज के लिए खरीददारी करने बाजार चले गए क्योंकि स्टेशन ही हमारा बाजार था। मैं मां के मना करने पर भी उस औरत के बगल में बेंच पर जाकर बैठ गई। मुझे जानना था कि सच में यह देवी मैया तो नहीं है। वह चाय पी रही थी उन्होंने मुझसे पूछा चाय पिएगी। मैंने सर झुका लिया पहली बार बिना मांगे चाय मिल रही थी।
फिर उन्होंने बिस्किट बढ़ाया मैं आश्चर्य में थी बिना मांगे यह सब कुछ दे रही है कौन है यह। वह मुझसे बात कर रही थी मैं आश्चर्य में थी वह मेरी भाषा में बोल रही थी। जबकि पिताजी के साथ जब मैं शहर गई थी तो वहां के लोग दूसरी भाषा में बात करते थे। वह मुझसे पूछ रही थी पढ़े छी। कैसे पढ़ूंगी गांव में सिर्फ पांचवी तक की पढ़ाई होती है।

 

 नाव  से दूसरे गांव जाना होता है पढ़ने को। इतना पैसा कहां बापू के पास कैसे  पढ़ा पाएंगे वह मुझे। मैंने पांचवी कर ली है अब बापू कहते हैं हम गरीब आदमी है नहीं पढ़ा पाएंगे। तब तक पिताजी बाजार से वापस आ गए। मैं जानना चाहती थी क्या वह सच में देवी मैया है जिन्होंने हम तीनो भाई बहनों को बिना मांगे चाय, बिस्कुट, दालमोठ दिया । मैंने उनसे चुपके से पूछ लिया, मैं कहीं छलेसर अहा देवी नियर दिखे छी देवी मैया सी। वो सिर्फ मुस्कुरा दी ।

 

 ट्रेन आ गई, वह ट्रेन में चढ़ गई, जब ट्रेन खुलने लगी तो उन्होंने कागज का एक पैकेट पिताजी के तरफ बढ़ाया और बोली प्रसाद देना तो मैं भूल ही गई लो यह प्रसाद है। ट्रेन जा चुकी थी पिता ने पैकेट लिया और उसे खोला, पैकेट में दो सोने के कंगन थे। अंदर लिखा हुआ था मैं जानती हूं तुम्हें पढ़ना आता है ध्यान से पढ़ो यह कंगन तुम्हारी बेटी के लिए प्रसाद है, इन्हें बेच कर तुम अपना कर्जा तोड़ो और अपनी बेटी को पढ़ाओ जितना वह पढ़ सके क्योंकि कंगन बेचने पर कर्जा चुकाने के बाद इतना पैसा बच जाएगा जिससे तुम सब्जी का जो धंधा करना चाहते हो कर लोगे। देवी की इच्छा है और आज्ञा भी।

 

आसपास के लोग कहने लगे जरूर वह देवी मा ही है नहीं तो अनजाने को कौन इस तरह कंगन देता है। मैं गांव की पहली लड़की जिसने बगल गांव जाकर पढ़ाई की और मैट्रिक किया। ट्रेन द्वारा शहर जाकर बीए तक की शिक्षा हासिल की। ऐसा नहीं कि मेरी पढ़ाई में व्यवधान नहीं आया, पर मैया का आदेश की अपनी बेटी को पढ़ाओ जितना वह पढ़ सके व्यवधान पर भारी रहा। मैंने पढ़ाई पूरी कर गांव में ही शिक्षिका की नौकरी कर ली। क्योंकि मैं जानती हूं जिंदगी शिक्षा बिना अधूरी है।

 

मैं तैयार होकर माता के मंदिर गई पूजा किया और कहां मैया में जब भी ट्रेन में बैठती हूं आपका चेहरा ढूंढती हूं क्योंकि आप ट्रेन में ही बैठ कर वापस गई थी आज मिल जाना मां मैं फिर मुस्कुरा यह तो जब भी मैं शहर जाती हूं करती हूं। मैं शहर पहुंची मैंने विधायक साहब के सचिव के घर का कॉल बेल दबाया, एक महिला ने दरवाजा खोला, मैं  आवाक उनका का चेहरा देखती रह गई मेरी देवी मैया मेरे सामने खड़ी थी उन्होंने   मुझ से पूछा का क्या काम है मैं उनके चरणों में गिर पड़ी। मैंने कहा स्टेशन पर मुझे कंगन प्रसाद के रूप में दिया था तब से ढूंढ रही हूं देवी मैया मैं आपको, देखो मैंने b.a. कर लिया है।

 

वह मुस्कुरा पड़ी अंदर ले गई मुझे कहा तेरे अंदर एक आग देखा थी ।उस  आग को जलाए रखने के लिए जो त्याग किया वह सफल हुआ। मैंने पूछा देवी मैया आप कौन हैं, उन्होंने कहा एक सामान्य औरत, पर आप तो मेरी भाषा बोल रही थी। वह हंस पड़ी कहां मेरे पिताजी वहां स्टेशन मास्टर थे उन्हीं के साथ कुछ महीने वहां रही तो सीख लिया। उस इलाके को अच्छी तरह जानती हूं मैं। वहां देवी मां के दर्शन को गई थी क्योंकि मैंने मानता की थी कि अगर मेरी नौकरी लग गई तो देवी मां आपके दर्शन को आऊंगी।

 

दो बेटियों को जन्म देने की सजा पा रही थी। माता की कृपा से मुझे अच्छी नौकरी मिल गई तो दर्शन को गई थी वहां। मैंने पूछा आपके घर वालों ने के लिए नहीं पूछा। उन्होंने कहा दो बेटियों के लिए मार खा रही थी तीसरी के लिए थोड़ा और खाने को तैयार थी । पर नौकरी ने मुझे मजबूत बना दिया था किसी ने पूछा ही नहीं कंगन कहां गए। क्योंकि अब मैं सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन चुकी थी।

 

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तुम बताओ यहां क्यों आई हो, मैं बोल पड़ी आपके दर्शन को देवी मैया। तब तक वह मेरी फाइल पढ़ चुकी थी बोली अपने गांव में हाईस्कूल खुलवाना चाहती हो जल्दी तुम्हारे गांव का मिडिल स्कूल हाई स्कूल में अपग्रेड हो जाएगा क्योंकि जहां तुम्हारे जैसी बेटी हो वहां शिक्षा का अलख जागेगा ही। फिर सरकार भी कटिबद्ध है हर बच्चे तक शिक्षा पहुंचाने को। और हां सड़क का काम भी जल्दी शुरू होगा।

 

थोड़ी देर में तुम विधायक साहब से मिल लेना। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ बैठी थी इतने में वह चाय ले आई और बोली लो बिस्कुट, दालमोट खा लो तुम्हें पसंद है ना और हां मुझे देवी मैया बनने का आईडिया तुम्हीं ने दिया था। पर मैं देवी मैया जैसी दिखती हूं हो नहीं, और हां एक बात हर औरत के अंदर एक देवी है। तुम्हारे अंदर की देवी भी तो अपना हर सुख त्याग गांव के उत्थान के लिए कार्य कर रही है।

 

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